Friday, 28 April 2023

हमेशा देर कर देता हूं.

 

कवितेतील अनुभूती जेव्हा सार्वत्रिक होते तेव्हा कविता मनाला भिडते. काही करताना होणारी चलबिचल, to be or not to be, योग्य अयोग्य , यात वेळ निघून जातो.  

कवी   मुनीर नियाज़ी गजलेत पकडतो.

 

 

 हमेशा देर कर देता हूं मैं 


हमेशा देर कर देता हूं मैं 
ज़रूरी बात कहनी हो 
कोई वादा निभाना हो 
उसे आवाज़ देनी हो 
उसे वापस बुलाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं
 
मदद करनी हो उसकी 
यार का ढांढस बंधाना हो 
बहुत देरीना रास्तों पर 
किसी से मिलने जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

बदलते मौसमों की सैर में 
दिल को लगाना हो 
किसी को याद रखना हो 
किसी को भूल जाना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

किसी को मौत से पहले 
किसी ग़म से बचाना हो 
हक़ीक़त और थी कुछ 
उस को जा के ये बताना हो 
हमेशा देर कर देता हूं मैं 

 

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