Wednesday 17 June 2015

काव्य आणि संवाद कौशल्य

नाना पाटेकर म्हणजे अभिनय क्षेत्रातील एक उच्चस्थ शिखर  त्यातही संवाद कौशल्य म्हणजे  परमोच्च  बिंदू. अनेक चित्रपटातील संवाद त्या  मुळेच  अजरामर झाले आहेत. क्रांतिवीर , यशवंत, परिंदा,वजूद , थोडासा रुमानी हो जाय  अश्या अनेक चित्रपटाची यादी  देता येईल. अमोल पालेकरच्या थोडासा रुमानी हो जाय मधील नानांचा  हा संवाद म्हणजे सुंदर काव्य आणि संवाद कौशल्य याचा सुरेख मिलाफ.

हां मेरे दोस्त
वही बारिश
वही बारिश जो आसमान से आती है
बूंदों मैं गाती है
पहाड़ों से फिसलती है
नदियों मैं चलती है
नहरों मैं मचलती है
कुंए पोखर से मिलती है
खप्रेलो पर गिरती है
गलियों मैं फिरती है
मोड़ पर संभालती है
फिर आगे निकलती है
वही बारिश

                   ये बारिश अक्सर गीली होती है
                   इसे पानी भी कहते हैं
                   उर्दू में आप
                   मराठी में पानी
                   तमिळ में कन्नी
                   कन्नड़ में नीर
                   बंगला में… जोल केह्ते हैं
                   संस्‍कृत में जिसे वारि नीर जीवन पै अमृत पै अम्बु भी केह्ते हैं
                   ग्रीक में इसे aqua pura
                   अंग्रेजी में इसे water
                   फ्रेंच में औ’
                   और केमिस्ट्री में H2O केह्ते हैं

ये पानी आंखों से ढलता है तो आंसू कहलता है
लेकिन चेहरे पर चढ़ जाये तो रुबाब बन जाता है
हां…कोई शर्म से पानी पानी हो जाता है
और कभी कभी यह पानी सरकारी फाइलों में अपने कुंए समेत चोरी हो जाता है

                पानी तो पानी है पानी जिन्दगानी है
                इसलिए जब रूह की नदी सूखी हो
                और मन का हिरण प्यासा हो
                दीमाग में लगी हो आग
                और प्यार की घागर खाली हो

तब मैं….हमेशा
ये बारिश नाम का गीला पानी लेने की राय देता हूं
मेरी मानिए तो ये बारिश खरीदिये
सस्ती सुन्दर टिकाऊ बारिश
सिर्फ 5 हज़ार रुपये में
इस्से कम में दे कोई तो चोर की सज़ा वो  मेरी
आपकी जूती सिर पर मेरी
मेरी बारिश खरीदये
सस्ती सुन्दर टिकाऊ बारिश


दुसरी अशीच एक कविता आहे वजूद मधील 


कैसे बताऊं मैं तुम्हे?
मेरे लिए तुम कौन हो?, कैसे बताऊं?
कैसे बताऊं मैं तुम्हे
     तुम धड़कनों का गीत हो, जीवन का तुम संगीत हो
     तुम ज़िंदगी तुम बंदगी, तुम रोशनी तुम ताज़गी
     तुम हैर ख़ुशी तुम प्यार हो, तुम प्रीत हो मनमीत हो....!
 
आँखों में तुम यादों में तुम, साँसों में तुम आहों में तुम
नींदों में तुम ख्वाबों में तुम
तुम हो मेरी हर बात में, तुम हो मेरे दिन रात में
तुम सुबाह में तुम शाम में, तुम सोच में तुम काम में......!
 
मेरे लिए पाना भी तुम, मेरे लिए खोना भी तुम
मेरे लिए हासना भी तुम, मेरे लिए रोना भी तुम
और जागना सोना भी तुम जाऊं कहीं देखूं कहीं
तुम हो वहाँ तुम हो वहीं कैसे बताऊं मैं तुम्हे?, तुम बीन तो मैं कुछ भी नहीं
कैसे बताऊं मैं तुम्हे, मेरे लिए तुम कौन हो?
 
ये जो तुम्हारा रूप है ये ज़िंदगी की धूप है
चंदन से तराशा है बदन, बहती है जिस में एक अगन
ये शोखियाँ ये मस्तियाँ, तुमको हवाओं से मिली
ज़ूल्फें घटाओं से मिली होंठों में कालियाँ खिल गयी आँखों को झीले मिल गयी
चेहरे में सिमटी चाँदनी, आवाज़ में है रागिनी
शीशे के जैसा अंग है फूलों के जैसा रंग है
नदियों के जैसी चाल है क्या हुस्न है क्या हाल है
ये जिस्म की रंगीनियाँ जैसे हज़ारों तितलियाँ
बाहों की ये गोलाईयाँ, आँचल में ये पार्चछाइयाँ
ये नगरियाँ है ख्वाब की, कैसे बताऊं मैं तुम्हे, हालत दिल-ए-बेताब की
कैसे बताऊं मैं तुम्हे, मेरे लिए तुम कौन हो? कैसे बताऊं, कैसे बताऊं
कैसे बताऊं मैं तुम्हे?
 
मेरे लिए तुम धरम हो, मेरे लिए ईमान हो
तुम ही इबादत हो मेरी, तुम ही तो चाहत हो मेरी
तुम ही मेरा अरमान हो ताकता हूँ मैं हर पल जिससे, तुम ही तो वो तस्वीर हो
तुम ही मेरी तक़दीर हो, तुम ही सीतारा हो मेरा तुम ही नज़ारा हो मेरा
यू ध्यान में मेरे हो तुम, जैसे मुझे घेरे हो तुम
पूरब में तुम पश्चिम में तुम, उतर में तुम दक्षिण में तुम
सारे मेरे जीवन में तुम, हर पल में तुम हर छिन में तुम
मेरे लिए रास्ता भी तुम, मेरे लिए मंज़िल भी तुम
मेरे लिए सागर भी तुम, मेरे लिए साहिल भी तुम
मैं देखता बस तुमको हो, मैं सोचता बस तुमको हूँ
मैं जानता बस तुमको हूँ, मैं मानता बस तुमको हूँ
 
तुम ही मेरी पहचान हो कैसे बताऊं मैं तुम्हे देवी हो तुम मेरे लिए मेरे लिए भगवान
हो कैसे बताऊं मैं तुम्हे, मेरे लिए तुम कौन हो?
कैसे.............?

 
 
 
तिसरी  दामोदर कोरे ची कविता  त्यांनी एका कार्यक्रमात म्हटलेली 
 

वाटते सानुली मंद झुळुक मी व्हावे
घेईल ओढ मन तिकडे स्वैर झुकावे

         कधी बाजारी कधी नदीच्या काठी
         राईत कधी वा पडक्या वाड्यापाठी
         हळु थबकत जावे कधी कानोसा घेत
         कधी रमत गमत वा कधी भरारी थेट

लावून अंगुली कलिकेला हळुवार
ती फुलून बघे तो व्हावे पार पसार
परि जाता जाता सुगंध संगे न्यावा
तो दिशादिशांतुनी फिरता उधळुनी द्यावा

        गाण्याची चुकलीमुकली गोड लकेर
        झुळ्झुळ झर्‍याची पसरावी चौफेर
        शेतात पाचुच्या, निळ्या नदीवर शांत
        खुलवीत मखमली तरंग जावे गात

वेळूच्या कुंजी वाजवुनी अलगूज
कणसांच्या कानी सांगावे हितगूज
शिंपावी डोही फुले बकुळीची सारी
गाळुनी जांभळे पिकली भुळभुळ तीरी

          दिनभरी राबुनी दबला दिसता कोणी
          टवटवी मुखावर आणावी बिलगोनी
          स्वच्छंद अशा या करुनी नाना मौजा
          घ्यावया विसावा यावे मी तिन्हीसांजा. 


आपण सर्वांनी या कविता ऐकल्या असतीलच कविता वाचून पुन्हा एकदा युट्युब वर बघा,  ऐकणे एक  मैफिल होऊन जाईल.  

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